Friday 3 February 2017

यादे बक्त को आंशू से डहा देती है,,,,

मेरी और तुम्हारी तस्वीर .
बेड के उसी सिराहने पर रखी है , 
जहाँ तब थी ,,,,
ये ठन्डे और निशब्द उस जगह के बिलकुल नजदीक है ,,
जहाँ लेटते हुए तुम अपना सर रखती थी ,,
हमारा  चेहरा बीते हुए कल की मुस्कराहट में 
नहाया हुआ है ... 
जो आज अंशुओ की उस  ब्रस्टि  से ढका जाना 
बाकी है जिसने 
हजारो मील की दूरी तय की है ,,,
तुम्हे याद है गर्म जुलाई के वो तपते हुए दिन ,,,
और हाथो में हाथ डाले चलना .
हम सोच भी नहीं  सकते थे हम इतना दूर होंगे ..
और एक महीना दूर करेगा
उस प्यार को जो सालो हमने जिया ..
इस पल को अभी जियो कल हो न हो ,,
तुम सच ही कहती थी 
अब और असहनीय लगती है
ये इतनी लम्बी दूरी ...
जब सूने और अकेले दिन गुजरना चाहते  है ,,
और गुजरते है 
जव सूने और अकेले पल गुजरना चाहते है
और गुजरते है ..
और मै उनमे तुम्हे नहीं रख सकता ,,
क्यों  की यादे बक्त को आंशू से डहा देती है,,,, 

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